उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित बरसी गांव एक अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है, जहां महाभारत काल से ही होलिका दहन नहीं किया जाता है। यह परंपरा लगभग 5,000 वर्षों से चली आ रही है, जो इस गांव को विशेष बनाती है।
महाभारत कालीन शिव मंदिर की मान्यता
बरसी गांव में एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जिसके बारे में मान्यता है कि यह महाभारत काल का है। किंवदंती के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण कौरवों ने महाभारत युद्ध के दौरान रातों-रात करवाया था। जब पांडव पुत्र भीम को इस मंदिर के निर्माण की जानकारी मिली, तो उन्होंने अपनी गदा से इसके मुख्य द्वार को पश्चिम दिशा की ओर मोड़ दिया। इसलिए, यह मंदिर देश के कुछ गिने-चुने पश्चिममुखी शिव मंदिरों में से एक है।
होलिका दहन न करने की परंपरा
गांववासियों का मानना है कि इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है और भगवान शिव यहां विराजमान हैं। उनकी मान्यता के अनुसार, होलिका दहन की अग्नि से भगवान शिव के चरण झुलस सकते हैं। इसलिए, सदियों से इस गांव में होलिका दहन नहीं किया जाता है।
गांव की महिलाओं की परंपरा
बरसी गांव की विवाहित महिलाएं होलिका पूजन के लिए पड़ोसी गांवों में जाती हैं, क्योंकि उनके अपने गांव में यह परंपरा नहीं है। वे वहां जाकर होलिका पूजन करती हैं और फिर वापस आकर रंगों के त्योहार होली को धूमधाम से मनाती हैं।
शिवरात्रि का विशेष महत्व
हालांकि बरसी गांव में होलिका दहन नहीं होता, लेकिन महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आकर गुड़ और कद्दू चढ़ाते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गांव का नामकरण और ऐतिहासिक महत्व
किंवदंती है कि कुरुक्षेत्र जाते समय भगवान कृष्ण इस गांव में रुके थे और इसकी सुंदरता से प्रभावित होकर इसे बृज जैसा कहा था। तभी से इस गांव का नाम बरसी पड़ा। यह गांव सहारनपुर से लगभग 36 किलोमीटर दूर नानौता के पास स्थित है और इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा माना जाता है।
आस्था और परंपरा का संगम
बरसी गांव में होलिका दहन न करने की परंपरा आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। गांववासियों का भगवान शिव के प्रति अटूट विश्वास और उनकी परंपराओं के प्रति समर्पण इस अनूठी परंपरा को जीवित रखे हुए है। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोए हुए है।
इस प्रकार, बरसी गांव की यह विशेष परंपरा हमें भारतीय संस्कृति की विविधता और गहराई का एहसास कराती है, जहां आस्था, परंपरा और इतिहास का अनूठा संगम देखने को मिलता है।