भारत की वायुसेना की क्षमता में वृद्धि के लिए रूस ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। रूस ने भारत को अपनी अत्याधुनिक R-37M हाइपरसोनिक हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल की पेशकश की है, जो विश्व की सबसे लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों में से एक मानी जाती है। यह प्रस्ताव भारत की वायु रक्षा प्रणाली को और सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
R-37M मिसाइल की प्रमुख विशेषताएं
- लंबी दूरी तक मार करने की क्षमता: R-37M मिसाइल 300 से 400 किलोमीटर तक के हवाई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है, जो इसे विश्व की सबसे लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों में से एक बनाती है।
- हाइपरसोनिक गति: यह मिसाइल मैक 6 की गति से उड़ान भरती है, जो आवाज की गति से छह गुना अधिक है।
- उन्नत मार्गदर्शन प्रणाली: इसमें जड़त्वीय नेविगेशन, मध्य-कोर्स अपडेट्स, सक्रिय रडार होमिंग, और अर्ध-सक्रिय रडार मार्गदर्शन जैसी तकनीकों का उपयोग किया गया है, जिससे यह उच्च सटीकता के साथ लक्ष्यों को भेद सकती है।
- वजन और वारहेड: इसका कुल वजन लगभग 510 किलोग्राम है, जिसमें 60 किलोग्राम का उच्च-विस्फोटक वारहेड शामिल है, जो उच्च-मूल्य वाले हवाई लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से नष्ट करने में सक्षम है।
भारत के लिए रणनीतिक महत्व
R-37M मिसाइल की संभावित तैनाती भारतीय वायुसेना की हवाई प्रभुत्व को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह मिसाइल दुश्मन के AWACS, टैंकर विमानों और अन्य उच्च-मूल्य वाले लक्ष्यों को लंबी दूरी से ही नष्ट करने में सक्षम है, जिससे भारत की हवाई रक्षा प्रणाली मजबूत होगी। इसके अलावा, इस मिसाइल का भारतीय वायुसेना के मौजूदा Su-30MKI विमानों और भविष्य के प्लेटफार्मों के साथ एकीकरण संभव है, जिससे वायुसेना की मारक क्षमता में वृद्धि होगी।
भारत-रूस रक्षा सहयोग में नया अध्याय
रूस और भारत के बीच रक्षा सहयोग का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसमें ब्रह्मोस मिसाइल, Su-30MKI लड़ाकू विमान, और T-90S भीष्म टैंक जैसे संयुक्त विकास और उत्पादन शामिल हैं। रूस की तकनीक हस्तांतरण और स्थानीय उत्पादन में सहयोग की नीति ने भारत को आत्मनिर्भर बनने में सहायता की है। R-37M मिसाइल के संभावित संयुक्त उत्पादन से इस सहयोग में एक नया अध्याय जुड़ सकता है, जिससे भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी।
रूस द्वारा भारत को R-37M मिसाइल की पेशकश भारतीय वायुसेना की क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि का संकेत है। इससे न केवल भारत की हवाई रक्षा प्रणाली मजबूत होगी, बल्कि भारत-रूस रक्षा सहयोग में भी नई ऊंचाइयां जुड़ेंगी। यह प्रस्ताव भारत की आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।