हाल ही में पाकिस्तान द्वारा तुर्की से प्राप्त Bayraktar TB2 ड्रोन के परीक्षण के दौरान जो घटनाएँ सामने आईं, उन्होंने न केवल पाकिस्तान की सैन्य रणनीति पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि भारत की रडार क्षमताओं की श्रेष्ठता को भी उजागर किया है। यह घटना भारत-पाकिस्तान के बीच तकनीकी प्रतिस्पर्धा में एक नया अध्याय जोड़ती है।
Bayraktar TB2: तुर्की की गर्व की तकनीक
Bayraktar TB2 ड्रोन को तुर्की की रक्षा कंपनी Baykar ने विकसित किया है और यह ड्रोन हाल के वर्षों में यूक्रेन, अज़रबैजान और लीबिया जैसे देशों में युद्ध के मैदान में अपनी भूमिका के लिए प्रसिद्ध हुआ है। यह ड्रोन निगरानी, लक्ष्य भेदन और सीमित हथियार ले जाने में सक्षम है। पाकिस्तान ने इसे अपनी वायु शक्ति को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से खरीदा था।
भारतीय रडार की सतर्क निगाह
हाल ही में जब पाकिस्तान ने इन ड्रोन का परीक्षण किया, तो भारतीय रडार प्रणालियों ने न केवल उनकी उपस्थिति को तुरंत पहचान लिया, बल्कि उनकी उड़ान पथ, ऊँचाई और संचार संकेतों को भी ट्रैक किया। यह भारत की स्वदेशी रडार तकनीक की सफलता का प्रमाण है, जो अब अत्याधुनिक AESA (Active Electronically Scanned Array) तकनीक से लैस है।
तकनीकी विफलता या रणनीतिक भूल?
रिपोर्टों के अनुसार, Bayraktar ड्रोन पाकिस्तान की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। भारतीय रडारों द्वारा उनकी पहचान और ट्रैकिंग इतनी सटीक थी कि यह स्पष्ट हो गया कि ये ड्रोन भारतीय वायु क्षेत्र में कोई भी गोपनीय मिशन सफलतापूर्वक नहीं चला सकते। इससे पाकिस्तान की रणनीतिक योजना को झटका लगा है, और तुर्की की तकनीक पर भी सवाल उठने लगे हैं।
भारत की आत्मनिर्भरता का संदेश
इस घटना ने भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को और बल दिया है। DRDO और BEL जैसी संस्थाओं द्वारा विकसित रडार प्रणालियाँ अब न केवल घरेलू सुरक्षा में सक्षम हैं, बल्कि निर्यात के लिए भी तैयार हैं। यह भारत की “मेक इन इंडिया” नीति की सफलता का एक और उदाहरण है।
Bayraktar ड्रोन की यह विफलता केवल पाकिस्तान की तकनीकी कमजोरी नहीं दर्शाती, बल्कि यह भारत की रक्षा तकनीक की परिपक्वता और सतर्कता का प्रमाण भी है। आने वाले समय में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि तकनीकी श्रेष्ठता से जीते जाते हैं—और इस दौड़ में भारत अब पीछे नहीं है।