भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और ऐतिहासिक कदम सामने आया है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया जा रहा ‘कावेरी’ जेट इंजन अब अपने परीक्षण के अंतिम चरण में पहुँच चुका है। यह इंजन भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम को नई गति देने वाला है और देश को विदेशी इंजनों पर निर्भरता से मुक्त करने की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है।
क्या है ‘कावेरी’ इंजन?
‘कावेरी’ एक टर्बोफैन जेट इंजन है जिसे मुख्य रूप से भारत के हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस के लिए विकसित किया गया था। हालांकि शुरुआती तकनीकी चुनौतियों के कारण इसे तेजस में शामिल नहीं किया जा सका, लेकिन अब यह इंजन नए परीक्षणों और तकनीकी सुधारों के साथ फिर से चर्चा में है।
तकनीकी विशेषताएँ और प्रगति
कावेरी इंजन लगभग 52 किलो न्यूटन (kN) का थ्रस्ट उत्पन्न करने में सक्षम है, और इसे 80 kN तक बढ़ाने की दिशा में काम चल रहा है। DRDO और GTRE (Gas Turbine Research Establishment) ने इसमें कई उन्नत तकनीकों को शामिल किया है, जैसे कि डिजिटल इंजन कंट्रोल सिस्टम, उच्च तापमान सहनशीलता और बेहतर ईंधन दक्षता।
हाल ही में इस इंजन को फ्रांस के साथ मिलकर परीक्षण के लिए तैयार किया गया है, जहाँ इसे एक परीक्षण विमान में लगाकर उड़ान परीक्षण किया जाएगा। यह परीक्षण यह साबित करेगा कि कावेरी इंजन भविष्य में मानव रहित लड़ाकू विमानों (UCAVs) और अन्य स्वदेशी प्लेटफॉर्म्स के लिए उपयुक्त है या नहीं।
स्वदेशीकरण की दिशा में बड़ा कदम
भारत अब तक अपने लड़ाकू विमानों के लिए अमेरिकी, रूसी और फ्रांसीसी इंजनों पर निर्भर रहा है। कावेरी इंजन की सफलता भारत को इस निर्भरता से मुक्त कर सकती है और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को मजबूती दे सकती है। यह न केवल रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि विदेशी मुद्रा की बचत और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए भी आवश्यक है।
भविष्य की संभावनाएँ
यदि कावेरी इंजन अपने परीक्षणों में सफल रहता है, तो इसे भविष्य के स्वदेशी लड़ाकू विमानों जैसे AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) और Ghatak UCAV में शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा, यह भारत को रक्षा निर्यात के क्षेत्र में भी एक नई पहचान दिला सकता है।
‘कावेरी’ इंजन केवल एक तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता, आत्मनिर्भरता और वैश्विक रक्षा मंच पर उभरती भूमिका का प्रतीक है। यह इंजन भारत के लिए एक नई उड़ान का संकेत है—एक ऐसी उड़ान जो पूरी तरह स्वदेशी है, और जो भविष्य में भारत को रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भर और अग्रणी बना सकती है।