वर्तमान समय में हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था ने एक बड़ा कदम उठाया है। भारत सरकार ने Hindustan Aeronautics Limited (HAL) के माध्यम से अमेरिकी कंपनी General Electric Aerospace (GE) के साथ 113 जेट इंजन की खरीद के लिए लगभग US $1 बिलियन के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता विशेष रूप से भारत द्वारा विकसित हल्के युद्धक विमान Tejas Mk‑1A (LCA Mk-1A) के लिए है, जो भारतीय वायुसेना की क्षमताओं को नए आयाम देने जा रहा है।
इस सौदे के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं:
- ये इंजन GE F404-IN20 मॉडल के हैं, जिन्हें Tejas Mk-1A के लिए चुना गया है।
- डिलीवरी शेड्यूल 2027 से शुरू होगा और 2032 तक पूरी हो जाएगी।
- इस करार में सिर्फ इंजन सप्लाई नहीं बल्कि एक सपोर्ट पैकेज भी शामिल है, जिससे उत्पादन-श्रृंखला और सर्विसिंग में सहजता आएगी।
- यह समझौता भारत-अमेरिका के रक्षा तथा रणनीतिक संबंधों में नए अध्याय की शुरुआत भी है, जहाँ आत्मनिर्भर भारत (Make in India) के श्रेय के साथ उड़ान भर रहा है।
यह समझौता क्यों अहम है? सबसे पहले, Tejas Mk-1A को भारतीय वायुसेना के पुराने लड़ाकू विमानों की जगह लेने के लिए तैयार किया गया है। इस विमान के प्रमुख घटक इंजन हैं — इंजन की गुणवत्ता और विश्वसनीयता ही तय करती है कि विमान कितनी जल्दी, कितनी बार और किस तरह की स्थितियों में ऑपरेशन कर सकता है। इस सौदे के माध्यम से भारत सिर्फ एक उपकरण नहीं खरीद रहा, बल्कि अपनी तकनीकी और उत्पादन क्षमता को अगले स्तर पर ले जा रहा है।
दूसरे, इस तरह का सौदा स्पष्ट संकेत है कि भारत अब वैश्विक रक्षा-सप्लाई चेन में एक भरोसेमंद भागीदार बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। जब अमेरिका जैसी तकनीकी महाशक्ति के साथ यह समझौता होता है, तो यह भारत की क्षमताओं और भरोसे को दर्शाता है। साथ ही, यह विश्लेषण करने योग्य है कि यह कदम भारत की रणनीतिक स्थिति को भी सुदृढ़ बनाता है — बड़े और जटिल रक्षा उपकरणों में स्वदेशी भागीदारी बढ़ेगी और भविष्य में तकनीकी स्वतंत्रता संभव होगी।
तीसरे, आर्थिक दृष्टिकोण से देख लें तो यह समझौता करोड़ों रुपये के निवेश का प्रतीक है, जिसमें रोजगार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा-उद्योग के विकास की संभावनाएँ एक साथ जुड़ी हुई हैं। इन इंजनों की आपूर्ति, रख-रखाव और विमानों के उत्पादन के लिए लंबी श्रृंखला तैयार होगी जो स्थानीय उद्योग को मजबूती देगी।
हालाँकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। पहले भी इस प्रकार के इंजन सौदों में देरी देखने को मिली है — उदाहरण के लिए 2021 में GE के साथ 99 इनजनों के लिए समझौता हुआ था जो अभी तक पूरी नहीं हुई है। इसलिए इस नए समझौते की समय-सीमा, गुणवत्ता नियंत्रण और इनजनों की संचालन-शुरुआत पर नजर बनी रहेगी।
अंततः, यह सौदा सिर्फ एक व्यावसायिक टैबिल पर हस्ताक्षर नहीं है, बल्कि भारत के रक्षा-उड्डयन क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत है: जहाँ आत्मनिर्भरता, तकनीकी सहयोग और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी तीनों मिलकर देश को ऊँची उड़ान देंगे। इस दिशा में यह कदम निश्चित ही एक प्रेरणा है और हमें भविष्य में ऐसे ही बहुत-से कदम देखने की उम्मीद है।




