1963 में, एक छोटा रॉकेट अमेरिका से प्राप्त कर भारत ने अंतरिक्ष के सफर की नींव रखी—उस समय हम तकनीकी रूप से दुनिया से 6–7 साल पीछे थे। वर्तमान में, वही भारत उस अमेरिका निर्मित 6,500 किलोग्राम संचार उपग्रह को अपने इंडिजेनस लॉन्च वाहन से दो महीने के भीतर अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है। यह अद्वितीय उपलब्धि इस बात की मिसाल है कि कैसे एक राष्ट्र सिर्फ संसाधनों से नहीं, बल्कि दृढ़ दृष्टि और तकनीकी आत्मनिर्भरता से वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना सकता है ।
पिछले महीने ही ISRO ने NISAR (NASA–ISRO Synthetic Aperture Radar) उपग्रह का सफल प्रक्षेपण GSLV-F16 रॉकेट से किया था—जो कि आज दुनिया का सबसे महँगा और अत्याधुनिक धरातल-पर्यवेदन उपग्रह है। इस मिशन ने L-Band (NASA) और S-Band (ISRO) राडार तकनीक का संयोजन कर, पृथ्वी की सतह से होने वाले-परिवर्तन, ग्लेशियर पिघलाव, और प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी को नई ऊँचाई पर पहुँचाया है ।
आज, ISRO ने 34 देशों के 433 उपग्रहों को भारतीय रॉकेट से प्रक्षेपित कर अंतरिक्षीय सेवाएँ प्रदान की हैं—यह एक तीव्र विकास यात्रा का प्रमाण है। पहले जहां हम अनुकरणकर्ता थे, अब हम विश्वसनीय साझेदार बन चुके हैं।
वर्तमान मिशन का महत्व सिर्फ तकनीकी नहीं है, बल्कि यह भारत–अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग की गहरी नींव को और मज़बूत करता है। एक राष्ट्र जिसने सबसे पहले एक छोटा रॉकेट प्राप्त किया था, अब उसी प्रकृति का सबसे बड़ा संचार उपग्रह लॉन्च करने जा रहा है—यह सम्मान और उपलब्धि की बात है।
भविष्य में, ISRO की दिशा Gaganyaan मानव मिशन, 2035 तक भारतीय स्पेस स्टेशन, और 2040 तक वैश्विक अंतरिक्ष क्षमताओं के साथ तालमेल रखने की योजना दर्शाती है। इस प्रगति ने दिखाया है कि जब आत्मनिर्भरता, दूरदर्शिता और वैज्ञानिक प्रतिबद्धता एक साथ मिलते हैं—तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।




