भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु हथियारों की होड़ दशकों से चली आ रही है, लेकिन हाल ही में आई रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि अब यह मुकाबला सिर्फ संख्या तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भारत गुणवत्ता के मामले में भी पाकिस्तान को पीछे छोड़ चुका है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) द्वारा जारी की गई ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास न केवल अधिक संख्या में परमाणु हथियार हैं, बल्कि उनमें तकनीकी परिष्कार और प्रभावी वितरण प्रणाली भी शामिल है, जो पाकिस्तान के हथियारों से कहीं ज्यादा उन्नत है।
2024 के आँकड़ों के अनुसार, भारत के पास लगभग 172 परमाणु हथियार हैं जबकि पाकिस्तान के पास 170 के आसपास। हालांकि यह अंतर बहुत बड़ा नहीं लगता, लेकिन SIPRI का कहना है कि भारत के हथियार अधिक विविध प्रकार के लॉन्च प्लेटफॉर्म (जैसे अग्नि मिसाइलें, पनडुब्बी से लॉन्च होने वाली प्रणाली आदि) से लैस हैं। इससे भारत की “second strike capability” यानी प्रतिघात करने की क्षमता बहुत मजबूत बनती है।
भारत का परमाणु सिद्धांत ‘No First Use’ की नीति पर आधारित है, जो दुनिया भर में एक जिम्मेदार परमाणु राष्ट्र के रूप में उसकी पहचान को मजबूत करता है। दूसरी तरफ पाकिस्तान का रुख आक्रामक माना जाता है, जिसकी नीति में पहले हमले की संभावना बनी रहती है।
भारत अपने रक्षा तंत्र को लगातार आधुनिक बना रहा है, और डीआरडीओ की मदद से अब वो हाईपरसोनिक मिसाइल तकनीक, MIRV प्रणाली (Multiple Independently targetable Reentry Vehicle), और अत्याधुनिक परमाणु पनडुब्बियों पर भी काम कर रहा है। इससे आने वाले वर्षों में भारत की सामरिक क्षमता और भी अधिक सशक्त होगी।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत अपनी परमाणु नीति को वैश्विक संतुलन और शांति के अनुरूप बनाए हुए है। वह अपने हथियारों का विस्तार अनावश्यक रूप से नहीं करता, बल्कि रणनीतिक आवश्यकता और क्षेत्रीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेता है।
जहाँ पाकिस्तान अधिकतर चीनी सहायता पर निर्भर है, वहीं भारत ने अपनी अधिकतर परमाणु प्रणाली को स्वदेशी रूप से विकसित किया है। इससे भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और मजबूत होती है।
भारत की परमाणु ताकत अब सिर्फ हथियारों की संख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी रणनीति, तकनीक, और जिम्मेदार दृष्टिकोण ने उसे एक ग्लोबल न्यूक्लियर पावर के रूप में स्थापित कर दिया है। पाकिस्तान अब इस दौड़ में भारत से काफी पीछे नजर आ रहा है — न सिर्फ संसाधनों में, बल्कि सोच और तकनीक में भी।